औद्यानिक खेती पर विस्तृत चर्चा
अखिल भारतीय सरदार पटेल सेवा संस्थान अलोपीबांग परिसर में रविवार को 09 दिवसीय विराट किसान मेला 2023 के पंचम दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम कीं अध्यक्षता श्री विवेक कुमार सिंह कृषि निदेशक, उ0प्र0 द्वारा की गयी तथा विशिष्ट अतिथि डा0 आर0के0 मौर्य, संयुक्त कृषि निदेशक, प्रयागराज मण्डल, प्रयागराज। मेले में श्री विनोद कुमार, उप कृषि निदेशक, प्रयागराज, श्री के0एम0 चैधरी, उप निदेशक उद्यान प्रयागराज, श्री सुभाष मौर्य, जिला कृषि अधिकारी, श्री गौरव प्रकाश भूमि संरक्षण अधिकारी, श्री नलिन सुन्दरम् भट्ट जिला उद्यान अधिकारी, डा0 आर0पी0 सिंह, के0वी0के0 नैनी, डा0 डी0एस0 चैहान के0वी0के0डा0 नैनी डा0 टी0डी0 मिश्रा शुआट्स नैनी कृषि वैज्ञानिक, उपस्थित रहे।
उप कृषि निदेशक, प्रयागराज द्वारा सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए औद्यानिक खेती केे फायदे के बारे में विस्तृत चर्चा की गयी। उन्होंने पाली हाउस, पाली हाउस, एग्रोनेट, इत्यादि के माध्यम से संरक्षित खेती करने के लिये कृष्कों को प्रोत्साहित किया गया। बैमौसम में टमाटर, शिमला मिर्च, फूलगोभी, ड्रैगनफूड, फल, सब्जियों का उत्पादन करके कृषक दोगुनी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
कृषि निदेशक महोदय, उत्तर प्रदेश द्वारा कृषि विभाग द्वारा संचालित योजनाओं में पारदर्शिता के बारे में जानकारी दी गयी। इस तरह के मेले कृषकों को कृषि के ज्ञानवर्द्धन के लिये लगाये जाते हैं। किसानों को इस तरह के कार्यक्रम में भाग लेकर अपने ज्ञान में वृद्धि करना चाहिए इससे कृषकों के कृषि से संबंधित आवश्यकताएं पूर्ण होती हैं। किसानों को पंजीकरण कराने एवं मृदा सुधार के लिये चलाये जा रहे कार्यक्रमों से जुड़ने हेतु प्रोत्साहित किया गया। रबी मौसम में कृषकों को दलहन एवं तिलहन के मिनीकिट उपलब्ध कराये गये हैं जो कृषकों के प्रक्षेत्र पर दिखायी पड़ रहा है इससे दलहन-तिलहन पर हमारी आत्म निर्भरता बढ़ेगी। इसी प्रकार मिलेट्स के मिनीकिट कृषकों को कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराये जायेंगे।
निजी क्षेत्र की प्रमुख बीज उत्पादन कंपनी अंकुर सीड्स के प्रतिनिधि डा0 अरविन्द चैधरी ने धान की वैज्ञानिक खेती करने के तरीके पर विस्तार से चर्चा की। नर्सरी तैयार करने के लिये अच्छे प्रजाति के धान के बीज का चयन करें, धान के लिये एक एकड़ खेत में 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है। धान के बीज को भिगों लें और उसे 24 घंटे या 48 घटें तक नमीयुक्त जूट के बोरे से भिगोकर ढक दें, ऐसा करने से आपके प्रत्येक धान के बीज का अंकुरण अच्छा होगा। नर्सरी डालते वक्त बीज का शोधन करने से उसमें रोग नहीं लगेगा। 21 से 25 दिन में धान की नर्सरी को कम से कम खेत में अवश्य रोपाई कर दें तथा उचित दूरी पर पौधों को लागने पर पौधे में कल्ले ज्यादा निकलते हैं जिससे धान में बालियाॅं ज्यादा होने से पैदावार अच्छी होती है। धान में जब कण्डुवा रोग लगता है तो उसके रोकथाम के लिये धान की फसल में फूल निकलते समय या बाली लगते समय कार्बेन्डाजिम दवा का स्प्रे करने से बीमारी से छुटकारा मिल जायेगा।
डा0 आर0 पी0 सिंह के0वे0के0 नैनी, प्रयागराज द्वारा मशरुम की खेती करने के फायदे के बारे में बताया गया कि मुख्य रूप से मशरूम की व्यसायिक स्तर पर खेती की जाती है, जिसमें सफेद बटन मशरुम, आयस्टर मशरुम, दूधिया मशरुम, पैडीस्ट्रा मशरुम शिटाके मशरुम इत्यादि है। बटन मशरुम उत्पादन के लिये 22 से 26 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इस तापमान पर कवक जाल बहुत तेजी से फैलता है बाद में कम तापमान की आवश्यकता होती है, इसे हवादार कमरे, झोपड़ियों में उगाया जा सकता है। उत्तरी भारत में सफेट बटन मशरुम खेती अक्टूबर से मार्च महीने में की जाती है उसके लिये आर्द्रता 80 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए। किसान मशरुम उत्पादन के लिये बास व धान पुआल से बने स्थायी सेड अथवा झोपड़ी का प्रयोग कर सकते हैं। धान व बांस की पराली से 30ग22ग12 (लं0ग चै0गउं0) फीट आकार के सेड अथवा झोपड़ी बनाये जाते हैं। कम्पोस्ट तैयार करने के लिये भूसे अथवा पराली में मुर्गी की खाद, यूरिया, किसान खाद, इत्यादि मिलाकर कम्पोस्ट तैयार किया जाता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि कम्पोस्ट में नाइट्रोजन की मात्रा 1.6 से 1.7 प्रतिशत होनी चाहिए। कम्पोस्ट में मुख्यतः 300 किलो भूसे के साथ 30 किलोग्राम गेहूॅं का चोकर, 30 किलोग्राम जिप्सम, 3 किलोग्राम पोटास, 3 किलोग्राम सुपर फास्पेट, 3 किलोग्राम गुड़ या शीरा मिला करके कम्पोस्ट की मोटी परत बनाकर इसे जीवाणु रहित किया जाता है।(फार्मलीन अथवा गर्म हवा के द्वारा) मिलाने के 24 घण्टे के अन्दर कम्पोस्ट का तापमान बढ़ने लगता है। छठवें दिन से एक महीने तक पलटाई की जाती है जिससे कम्पोस्ट अच्छी तरह सड़कर मशरुम के उत्पादन हेतु तैयार हो जाता है इससे बने हुए कम्पोस्ट को पालीथीन बैग में भर कर इसके ऊपर 100 किलोग्राम कम्पोस्ट में 500 से 700 ग्राम मशरुम की बीजाई की जाती है जिसे स्पोंनिंग कहते हैं। 12 से 15 दिन पश्चात् मशरुम की छोटी-छोटी कलिकायें निकलना शुरू हो जाती हैं जो आगे चलके 4 से 5 सेमी में बटन के आकार में परिवर्तित हो जाती है। सामान्यतः 10 किलोग्राम भूसे से 5 किलोग्राम बटन मशरुम प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार उपयुक्त समय और यथेष्ठ जानकारी के फलस्रूप किसान उपलब्ध संशाधनों का प्रयोग करते हुए मशरुम की खेती से अधिकाधिक आय के साथ-साथ गुणवत्तायुक्त आहार में वृद्धि कर सकता है।
श्री ललित कुमार वर्मा शोध छात्र शुआट्स नैनी कृषि विश्वविद्यालय प्रयागराज के द्वारा विभिन्न सब्जियों में ग्राफ्टिंग की तकनीक को विस्तार से बताया गया इस विधि का प्रयोग करने से विशेषकर टमाटर में लगने वाले विल्ट एवं डैम्पिंग आफ जैसी बीमारी से किसान भाईयों को निजात मिल सकती है जिससे टमाटर की पैदावार में वृद्धि होती है और कृषकों की आमदनी में वृद्धि होती है। श्री उदित नारायण शुक्ला, निदेशक, एफ0पी0ओ0 के द्वारा जैविक खेती, वृक्षारोपण, गौशाला के अनुभव को साझा करते हुए बताया गया कि कृषकों को भ्रमण कर पूर्व से ही इस प्रकार के कार्यक्रम को अपनाने वाले कृषकों से मिलना चाहिए जिससे व्यवहारिक अनुभव प्राप्त होगा और कार्यक्रम को अपनाने में सुविधा होगी।
संयुक्त कृषि निदेशक, प्रयागराज मण्डल, प्रयागराज द्वारा कृषकों को खेती में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक कृषि विभाग के माध्यम से दिये जा रहे अनुदान के बारे में जानकारी दी गयी। इस प्रकार किसानों को भूमि की तैयारी में कृषि यंत्रों पर कृषि निवेश के रूप में बीज पर, फसल सुरक्षा के रूप में, कृषि रक्षा रसायनों पर, सिंचाई के लिये सोलर पम्प पर तथा फसल कटाई के पश्चात् बखारी एवं स्माल गोदाम निर्माण पर अनुदान की व्यवस्था कृषकों के लिये कृषि विभाग द्वारा की गयी है।
आज के कार्यक्रम में फार्ममशीनरी बैंक के 03 कृषकों को चाभी, 02 कृषकों को सोलर पम्प के प्रमाणपत्र तथा प्रतियोगिता के 05 विजेताओं को नैनो यूरिया और श्वायल डिटेक्शन किट का वितरण मुख्य अतिथि महोदय के द्वारा किया गया।
आज के कार्यक्रम में कृषि से संबंधित विभिन्न विभागों एवं संस्थाओं द्वारा कृषकों की जानकारी के लिये 60 स्टाल लगाये गये तथा लगभग 1600 कृषकों द्वारा कार्यक्रम में प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम में संयुक्त कृषि निदेशक, प्रयागराज मण्डल, प्रयागराज द्वारा श्री विवेक कुमार सिंह कृषि निदेशक महोदय को अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह् भेंट किया गया।
कार्यक्रम का संचालन श्री इंदिरा कान्त पाण्डेय, पूर्व उप परियोजना निदेशक, आत्मा प्रयागराज द्वारा किया गया।
उप कृृषि निदेशक, प्रयागराज द्वारा संयुक्त कृषि निदेशक, प्रयागराज मण्डल, प्रयागराज की अनुमति से कृषकों, अधिकारियों एवं मीडिया सेल को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की जाती है।