बुद्ध का धम्म ही एकमात्र विकल्प है जिसे घर घर पहुंचाने की जरूरत है
भारत को बौद्धमय भारत बनाने का लिया संकल्प
प्रयागराज, ज्ञान के प्रतीक राष्ट्रनायक भारतीय गणतंत्र के महानायक आधुनिक भारत के निर्माता नारी मुक्तिदाता संविधान निर्माता भारतरत्न बोधिसत्व डा. बाबासाहेब भीमराव रामजी आम्बेडकर के 67वें महापरिनिर्वाण दिवस पर समाज में निरन्तर घट रही नैतिकता, आचरण, सभ्यता एवं स्वास्थ्य आदि मुद्दों के साथ साथ बहुजन साहित्य कला और संस्कृति के विकास संरक्षण सम्बर्धन और उसको पुनर्स्थापित करने की दिशा में प्रतिबद्ध प्रबुद्ध फाउंडेशन, देवपती मेमोरियल ट्रस्ट के साथ साथ नगर के दर्जनों बुद्धिजीवी, समाजसेवी चिंतकों आदि ने एक ओर जहां हाईकोर्ट स्थित डा. अम्बेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर भारत को बौद्धमय बनाने का संकल्प लिया तो वहीं दूसरी ओर ग्लास फैक्ट्री पंतरवा स्थित डा. भीमराव अम्बेडकर बुद्ध बिहार में पांच दिसम्बर से चलाई जा रही एक बारह दिवसीय प्रस्तुतिपरक बहुजन नाट्य कार्यशाला के रंग प्रेमियों ने भी भारत को बौद्धमय बनाने का सकल्प के साथ बाबासाहेब को अपनी श्रद्धाजलि अर्पित किये। उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता आईपी रामबृज ने बताया कि समाज में आज नैतिकता एवं आचरण का निरंतर पतन होता जा रहा है, हर कोई एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारो लगकर अपने निजी स्वार्थ के चक्कर में समाज से दूर होते जा रहे है। एडवोकेट कुमार सिद्धार्थ ने बताया कि आधुनिकीकरण के दौर में हम अपने संस्कारों एक मर्यादाओं को भूलते जा रहे है। लोकनाथ ने कहा की तथागत गौतम का धम्म ही एक मात्र विकल्प है जिसे घर घर और गांव गांव पहुंचाने की आवश्यकता है। सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि लोग अपनी जिम्मेदारी व जवाबदेही को भूलते जा रहे हैं। लोग बाबासाहेब डा. अम्बेडकर के सपनों एवं संघर्षो को दर किनार कर अपने वर्चस्व को ज्यादा महत्व देने में लगे हुए हैं। राजू गौतम ने कहा की लोगो में एक दूसरे के जुड़ाव का कोई मायने अब नहीं दिखता। आपसी प्रेम भाईचारा की जगह नफरत और साजिशो का जाल बिछता जा रहा है। आँचल और रिया ने कहा कि हर धर्मो में महिलाओ को दोयम दर्जे का समझा जाता है और बुद्धिस्ट विचारधारा के लोगों में भी महिलाओ को शामिल नहीं करने का षड्यंत्र शुरू हो गया है। श्रेष्ठ ने कहा कि हमे अपने अहंकार से हटकर समाज को जोड़ने तथा घर घर अलख जगाने तथा सर्व समाज, जाति व राजनीतिक लोगों को एक साथ जोडकर चलना होगा तभी परिवर्तन संभव है। रजत और साहिल गौतम ने कहा कि समाज अच्छाई की तरफ कम पर बुराई की तरफ ज्यादा झुकता जा रहा है पाश्चात्य सभ्यता, संस्कृति व शैली, आधुनिक खानपान, रहन सहन के चक्कर में प्रकृति से मोह भंग कर चुका है जिससे प्रकृति भी आज उनसे मुख मोड़ती जा रही है जिसका एक प्रभाव कोरोना है। लगातार लोगो के स्वास्थ्य में आ रही गिरावट एक विकराल प्रलय का संकेत दे रही है। श्रद्धांजलि के उपरान्त सर्व सम्मति से उपस्थित लोगो ने समाज में निरंतर आ रही संस्कारों, नैतिकता, आचरण व स्वास्थ्य में आ रही गिरावट को रोकने का निर्णय लिया और सर्वसम्मति से भारत को बौद्धमय भारत के निर्माण में काम करने का निर्णय लिया।